शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

लोकतंत्र में असहमति पर दो टूक

प्रिये मित्रो, आज फिर लोकतंत्र मेंअसहमति के महत्व पर चर्चा शुरू हुई हैं। मैँ सुप्रीमकोर्ट और विधि आयोग के इस सुझाव से सहमत हूँ कि लोकतंत्र में वैचारिक भिन्नता, सरकार की आलोचना तथा देश/समाज के हालात पर बेबाक बोलना, विचार को किसी भी माध्यम से व्यक्त करना/प्रेषित करना अथवा ऐसे साहित्य को साथ रखना या वितरित करना अपराध या देशद्रोह की श्रेणी में नही आता। यह लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है। इससे इतर ऐसी किसी हरकत को जो सम्प्रभु राष्ट्र सत्ता को चुंनौति दे, मौजूद कानून-व्यवस्था को तार-तार करने का प्रयास करे या योजना बनाये, हथियार बंद होने की अपील करे और उनका संचय करे को किसी कीमत पर स्वीकार नही किया जा सकता।
कुछ नक्सलियों की हालिया गिरफ्तारी से यह विषय आज एकबार फिर देश के बुद्धिजीवियों को उद्वेलित कर रहा है। मैं इस संबंध में एक बेहतरीन चित्र को शेयर कर रहा हूँ। यह चित्र आज के हिंसाग्रस्त दुनिया का चित्र है। जिसमे आदमी के दिमाग में भरी अहंकार ,घृणा ,द्वेष और अशांति की आग तथा काले धुएं का बवंडर भयावह विनाश का संकेत दे रहा है। किसी विचार या कार्य से असहमति को यदि कोई व्यक्ति या समूह या संगठन अराजकता/हिंसा अथवा देश के सामाजिक ताने-बाने को क्षत-विक्षत करते हुवे व्यक्त करता है तो वह अस्वीकार्य है।

( Embrace Burns
This is the first piece of art to be engulfed in flames here at Burning Man.  They set
it off just after sunrise...  it was so amazing to watch.  I usually don't post two photos in a row of the same subject matter, but I think these two together show the ephemeral nature and the full alpha to omega of what happens here every year.)

शनिवार, 18 अगस्त 2018

एक किताब-ओस के रंग


मेरी छोटी बहन विकी आर्य की प्रकृति से मिली संवेदनाओं को समेटते कविता के लघु बांधो का यह तीसरी प्रकाशित पुस्तक है।
यूँ तो विकी आर्य बाल साहित्य के चित्रांकन, सोशल ऑब्जेक्टिव डॉक्यूमेंट्री व विज्ञापन की दुनिया का एक सिद्धहस्त नाम है किंतु उसने प्रकृति से मिली संवेदनाओं को अपनी कलाकृतियों और कविताओं में भी बखूबी उकेरा है।
बीएचयू से फाइन आर्ट में एमए गोल्डमैडलिस्ट हो कर उसने विज्ञापन व्यवसाय की दुनिया मे कदम रखा। धर्मयुग और नवभारत टाइम्स को अनेक चित्रों से सजाने से शुरू हुआ उनका कदम कलाओं की अनेक विधाओं में अपनी छाप छोड़ आगे बढ़ता रहा।
उत्तराखंड की आर्ट एकेडमी की पहली एग्जीबिशन में राज्यपाल सुरजीत बरनाला द्वारा मूर्ति शिल्प का प्रथम पुरस्कार मिला। गीतकार गुलज़ार ने अपने स्नेह से उन्हें नवाज़ा और प्रख्यात अभिनेत्री शबाना आज़मी के हाथों उनके पहले काव्य संग्रह कैनवास का वाचन और लोकार्पण हुवा।
रेमाधव जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन से यह उनका तीसरा कविता संग्रह है जिसमे हिंदी के भावबिन्दु का इंग्लिश में रूपांतरण ममता गोविल ने किया है। पुस्तक ऐमेज़ॉन पर भी उपलब्ध है।
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बरसात के इस मौसम में जब धरा सज्वला हो हरीतिमा की चादर ओढ़ लेती है कहीं  किसी के आंसू भी बन जाती है, इसी को व्यक्त करती ये छह पंक्तियां-
कईं बार चाहा
कि बदल बन जाऊं
भिगो-भिगो कर धरती को
खिलखिलाऊँ
पर जब बरसा
तो आंखे उसकी नम करदी।
और क्या कर पाया मैं ?
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किसकी आंखों में है
स्वप्नों की कस्तूरी गंध ?
कि जंगल-जंगल हो जाने को
चाहता है मन।

मंगलवार, 12 जुलाई 2016

अर्थशास्त्र भी धर्म और विचारपंथ में बंटा है।

 अर्थशास्त्र भी धर्म और विचारपंथ में बंटा है।


हम में से ज्यदातर लोग समाज को धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के दायरों में बंटा होना जानते हैं। हम यह भी जानते हैं कि सभ्यता के अंग साहित्य, कला-संस्कृति, स्थापत्य और परम्पराएँ भी ऐसे ही दायरों में बंटी है। किन्तु विद्वानों के दिमाग ने विज्ञानं और सामाजिक विज्ञानं को भी अपनी सामुदायिक अथवा क्षेत्रीय श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए, ऐसे ही दायरों में बाँट लिया है।
ऐसी ही एक पुस्तक से रूबरू होना मेरे लिए आश्चर्य और कौहतुअल का विषय बना। कुछ दिन पूर्व मेरे एक मित्र के सौजन्य से मुझे मार्क्सवादी अध्येता-नेता एम् जी बोकरे की अर्थशास्त्र पर लिखी पुस्तक पढ़ने और चर्चा करने को मिली। वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी चुनौतियों, लाभ के बंटवारे, श्रम और श्रमिक के नियोजन, हितलाभ,श्रमिक विवाद, पूंजी, ब्याज, जैसे जटिल विषयों पर विद्वान् लेखक ने शोधपूर्ण अध्याय लिखे।
मेरे लिए विश्मयकारी था कि लेखक ने वेद में उल्लेखित मंत्रो से लेकर आचार्य बृहस्पति, महाभारत, विदुर, बौद्ध ग्रन्थ और आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र का गहन परीक्षण कर 'भारतीय अर्थशास्त्र
के स्वरूप और सिद्धांतो को प्रतिपादित करने का प्रयास किया।
इस पुस्तक से परिचित होने से पूर्व मैं अर्थशास्त्र के सामान्यतः स्वीकार्य स्वरूप से ही परिचित था कि अर्थशास्त्र के आधुनिक सिद्धांत विज्ञानं के सास्वत नियमो की तरह उत्पादन के साधन श्रम, माल, पूंजी, मशीन और भूमि के सम्बन्ध तथा उत्पादन लागत, मुनाफा, बाजार में मांग और मूल्य को निर्धारित-प्रभावित-नियंत्रित करते हैं।  किताब पढ़ कर पता चला कि ज्ञान भी धर्म, जाति और क्षेत्र के तंग नज़रिये से प्रस्थापित किये जाते हैं। मुझे इसीसे पता चला कि अर्थशास्त्र भी मुस्लिम, ईसाई और हिन्दू के साथ साथ अमेरिकन, योरोपियन, समाजवादी, पूंजीवादी या कम्युनिष्ट, हो सकता है।
मेरा आश्चर्य तब और बढ़ गया जब पुस्तक की प्रस्तावना और प्रकथन से ज्ञात हुआ कि "भारतीय अर्थशास्त्र" के शीर्षक से लिखी इस शोधपूर्ण पुस्तक को प्रकाशको ने छापने में असमर्थता जताई।निराश मार्क्सवादी-कम्युनिस्ट नेता व अध्येता को धुर दक्षिणपंथी  बीएमएस नेता डी बी ठेंगडी की शर्त तथा कम्युनिस्ट पार्टी से निष्कासन की पीड़ा के साथ इस पुस्तक को "Hindu Economics" {हिन्दू अर्थशास्त्र } नाम देकर 1993 में प्रकाशित करवाना पड़ा।
पुस्तक में यूँ तो विभिन्न ग्रंथो के सन्दर्भ के साथ दूसरे स्थापित अर्थशास्त्रो की तुलनात्मक विवेचना भी शामिल है। किन्तु, महत्वपूर्ण यह है कि हिन्दू अर्थशास्त्र मोटे तौर पर जिन 10 आदर्श लक्ष्यों की प्राप्ति या स्थापना सुझाई गई है, उंनमे एक ब्याज मुक्त बैकिंग प्रणाली मुस्लिम अर्थशास्त्र से स्वीकार की गई है। पुस्तक और 10 लक्ष्यों की फोटो शेयर कर रहा हूँ, ऐसे वक्त में जबकि दुनिया वैकल्पिक अर्थव्यवस्था और अर्थशास्त्र की तलाश में है क्या हिन्दू इकोनॉमिक्स उस जरुरत को पूरा कर सकता है ?

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

श्रीकृष्ण की अंतर्वेदना

श्रीकृष्ण की अन्तर्वेदना महाभारत [ के शान्तिपर्व के अध्याय ८१] में व्यक्त हुई है , नारद आते हैं तो वासुदेव का मन खुल जाता है । वे कहते हैं > नारद , गुप्त मन्त्रणा केवल विद्वान से ही नहीं की जा सकती , न केवल सुहृद से ही की जा सकती है , गुप्त मन्त्रणा के लिये इन दोनों योग्यताओं के साथ मनस्वी होना भी जरूरी है , आप में ये तीनों ही विशेषता हैं ,इसलिये आप से कह रहा हूं । मेरे परिवार में शान्ति नहीं है । हालांकि मुझे जो उपभोग्य-साधन मिल जाते हैं , उनका आधा हिस्सा मैं कुटुंब को छोड देता हूं और आधे से ही काम चलाता हूं ,फिर भी ये कुटुंबी- जन मन में कटुता रखे हुए रहते हैं और कटु-वाक्य बोल भी देते हैं ।मैं अन्दर ही अन्दर जलता रहता हूं । बलराम अपने बल के गरूर में डूबे रहते हैं , छोटा वाला > गद है, वह परिश्रम से भागता है, प्रद्युम्न बेटा है , मुझे सहायता कर सकता है किन्तु वह अपने सौन्दर्य में मतवाला रहता है । अंधक और वृष्णि-वंश में दुर्धर्ष वीर हैं किन्तु आहुक और अक्रूर ने वैमनस्यभाव पैदा कर दिया है ।दो जुआरी बेटों की मां जैसी मेरी स्थिति है कि वह मां कौनसे बेटे की जीत चाहेगी ? मैं तो दोनों में से किसी की भी पराजय नहीं चाहता। 
 मैं किसकी ओर रहूं ,जिसकी बात को सही न कहूं , वही मुझे शत्रु समझने लगता है ।नारद , मैं मन ही मन व्यथित रहता हूं. मैं क्या करू? श्रीकृष्ण भगवन की इस अंतर्वेदना का कारण आज के संसार के हालत को देख कर समझा जा सकता है। आज के भौतिकतावादी और बाज़ारवाद का शिकार उपभोक्ता विभिन्न उपक्रमों के माध्यम से जो संसाधन अपने परिवार के लिए जोड़ता है उसकी परनिटी हम समाज में बढ़ते विग्रह और हिंषा के रूप में खुली आँख देख रहे है। पूंजी और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन का आधिक्य परिवार में श्री कृष्ण के कुटुंब में पनपे आलस्य ,विग्रह ,परस्पर द्वेष और अशांति के रूप आज भी  सामने जीवंत है। क्या यही आज का सच नहीं है ? श्रीकृष्ण  हम भक्त जन क्या उनके द्वारा व्यक्त वेदना से सबक लेते हुए कोई मार्ग तलाशेंगे ?

बुधवार, 29 जुलाई 2015

ईमानदार पिता का घर।

उत्तराखंड के फेसबुक पर पत्रकारों की संपत्ति जांच को लेकर पोस्ट पढने को मिल रही हैं। उस पर साथियों के कॉमेंट्स में बेईमानी और दलाली से ख़ड़ी की गई पूंजी तथा इमारतों पर जांच के इशारे किये जा रहे हैं। कॉमेंट्स के घेरे में नेता और अधिकारी भी शामिल हैं। अविश्वास और द्वेष की इस आग को बेईमानी से संचित धन और शौहरत का ईंधन मिलता है। और जो लोग सामाजिक मर्यादाओं का हनन कर इस काम को अंजाम देते हैं वें सभी लोग समाज के साझा शत्रु होते हैं। वैसे तो उन पर अंकुश लगाना और आवश्यक होने पर दण्डित करना शासन और सरकार का काम है। 
किन्तु ,लोकतंत्र में देखने में आया है कि  आये चारित्रिक विचलन ने ,और विकास के ऐश्वर्य  मॉडल ने लोगो की धन लिप्सा बढ़ा दी है। परिणाम सामने हैं। समाज में असंतोष और परस्पर विद्वेष बढ़ रहा है। सरकार सस्टेनेबल डवलपमेंट नहीं दे पा रही है। बाज़ार अनुत्पादक तरीके से अर्जित पूंजी के डैम पर छलांगे मारता दीखता है। ऐसे माहौल में तस्वीर का दूसरा पहलु उकेरती अतुल कुमार जैन की कविता एक घर के चित्र को कुछ यूँ भी कहती है --
बेमिसाल घर
उन दीवारों की दरारों के बीच
छत पर मेहनत के पसीने के सीलन थी
उसूलों का झड़ता सीमेंट था
ईमानदारी की खुरदुरी फर्श थी
सच का चरमराता दरवाज़ा था
तंगी से झूलता, आवाज़ करता पंखा था
ज़बान की जंग लगी अलमारी थी
इंसानियत के बोझ तले दबी, दो टूटी कुर्सियां थी
और फरेब से कभी न खुलने वाला बाहर का ताला था
हाँ, यही तो था, बरसों की कमाई से बनाया हुआ मेरे पिता का
बेमिसाल घर...
जो आज भी मेरे लिये
मंदिर है...
आपका
अतुल जैन
----------------पर दोस्तों! देखिये ईमानदारी से खड़ा किया गया ऐसा मंदिर सा घर भी लोगो की आँखों में शूल सा चुभते है। क्योकि यह पिता की मेहनत और ईमान की नींव पर खड़ा है। यही आज के लोगो को अखरता है क्यों यह अकेला ईमानदारी  का ढोल पीटता हमारे रस्ते में अड़ा है।-----सोचे आप ! कि ईमानदार क्यों रहा जाए  ?

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

इज़राईल से क्यों न सीखें उत्तराखंड़

ग्यारह हिमालयी राज्यों में से मध्य हिमालय के नवोदित उत्तराखंड के गठन के लगभग १५ वर्षो की विकास यात्रा में जहां एक ओर प्रगति के पद छाप दिखाई देते हैं वहीँ दूसरी ओर जनता की जगाई गई आंकाक्षा के अनुरूप बड़ी आबादी और क्षेत्र विकास के लाभ से वंचित दिखाई दे रहा है। राज्य के राजस्व स्रोतों में गिरावट दर्ज हो रही है तो दूसरी तरफ गाँवों से निरंतर हो रहे पलायन ने आबादी और भूमि की अनेक असंतुलित समस्याओं ने उभारना शुरू कर दिया है। राज्य के प्रबंध और प्रशासन में दूरदृष्टि के आभाव साफ़ झलक रहे हैं। धन के भरी अपव्यय की अधिकृत और अनाधिकृत सूचनाओं ने जनमानस के विशवास को डिगाया है। इसका परिणाम है कि राज्य के प्रबुद्ध जनो की गंभीर चर्चाओं में राज्य के सचिवालय में पसरी अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार से दुखित हो इस राज्य के गठन के औचित्य पर ही सवाल उठाने लगे हैं। अक्सर कहा जाता है कि इससे अच्छे हाल में तो हम उत्तर प्रदेश में ही थे। और यह भी स्वर सुनने को मिल जाते हैं कि इस राज्य में इसे केंद्र शासित बनाये जाने या फिर यूपी में मिलाये जाने को एक नए आंदोलन की जरुरत है। 
राज्य के इस मनोदशा से उभरते परिदृश्य के परिप्रेक्ष में यह सोचा ही जाना चाहिए कि हम एक करोड़ पच्चीस लाख के मेहनती हाथो ,बुद्धिमान लोगो ,और प्रचुर प्राकृतिक सम्पदा के होते हताश और निराश क्यों हैं ? राज्य का नेतृत्व जनता को विश्वास और भरोसा दिला पाने में विफल क्यों है ? इन हालात से उबरने को हम मात्र 80 लाख आबादी के इज़राईल देश से प्रेरणा ले सकते हैं। एशिया के पश्चिमी छोर पर विषम भूभाग और चारो ओर शत्रुओं से घिरे इस देश ने कैसे प्रकृति की चुनौतियों का सामना किया और अपने देश को और नागरिको को खुशहाल तथा आत्मविश्वास से लबरेज़ कर दिया। उनके द्वारा विकास के हर क्षेत्र में जो - जो उपलब्धिया हांसिल की हैं वह हमारे लिए प्रेरणा और अनुकरण का मार्ग खोलती है। प्रस्तुत है उस विषय पर उपलब्ध एक आलेख ---
इज़राइल एक छोटा सा देश है, जो रेगिस्तान से सटा है। यहां की आबादी करीब 70 लाख है। इसका सकल घरेलू उत्पाद 120 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास है यानी प्रति व्यक्ति जीडीपी 25,000 अमेरिकी डॉलर। इस्राइल की कुल भूमि का क्षेत्रफल 21,000 वर्ग किलोमीटर है। इसमें सिफ‍र् 4,40,000 हेक्टेयर यानी 20 फीसदी भूमि ही खेती लायक है। असल में खेती 3 लाख 60 हजार हेक्टेयर भूमि पर होती है, जिसमें 1 लाख 80 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। इज़राइल की आधी से ज्यादा भूमि बंजर है। इस देश में मौसम की कठिन परिस्थतियों और जल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद यहां कृषि में सकारात्मक नतीजे देखने को मिले हैं। यह सफलता खेती में सृजनात्मकता व उद्यमिता की भावना के कारण और कृषि व कृषि–टेक्नोलॉजी उद्योगों के बीच तालमेल के कारण मिली है।
इज़राइली अर्थव्यवस्था का मूल अौर शुरुआती आधार खेती अौर खाद्य पदार्थों का उत्पादन रहा है। 1948 में जब इस्राइल की राष्ट्र के रूप में स्थापना हुई तो निर्यात किए जाने वाले मुख्य उत्पाद नींबू जाति के फल थे, जो जाफा लेबल के तहत बाहर भेजे जाते थे।
इस तरह शुरुआत सामूहिक आर्थिक व्यवस्था से हुई, जो कृषि उत्पादों अौर पारंपरिक उत्पादों पर आधारित थी। अब इसमें बदलाव आया है, जहां खुला बाजार है अौर विभिन्न प्रकार के निर्मित उत्पादों की विश्व भर में बिक्री हमारे सामने है। यह सफलता बेहद कम समय में ाप्त की गई है।
इज़राइल में कृषि, डेयरी व मांस उत्पादन के लिए अब आम पारंपरिक तरीकों की जगह ज्यादा आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल हो रहा है। यह खोजपरक शोध अौर विकास का नतीजा है, जो हमने अपने बूते पर किया है। जिन नए तरीकों का आविष्कार किया गया है उनमें सिंचाई की क्रांतिकारी तकनीक, भूमि को उपजाऊ बनाने, रेगिस्तान के उपयोग के लिये खारे पानी का इस्तेमाल बढ़ाना शामिल है। इज़राइल का कृषि–तकनीक उद्योग अपनी खोजपरक व्यवस्थाअों के गहन शोध और विकास के लिये जाना जाता है। देश में प्राकृतिक संसाधनों की कमी से निपटने की जरूरत के कारण ही आम तौर पर ऐसा हो पाता है। ये जरूरतें खास तौर से खेती योग्य भूमि अौर जल से संबंधित हैं। कृषि तकनीकों के लगातार आगे बढ़ने का कारण है शोधकर्ताओं, उसे विस्तार देने वाले एजेंटों, किसानों और कृषि पर आधारित उद्योगोंं के बीच करीबी सहयोग। ये मिले–जुले प्रयास कृषि के सभी क्षेत्रों में नई–नई सफलताअों अौर तरीकों को जन्म दे रहे हैं। इससे बाजारोन्मुखी कृषि व्यापार को मजबूती मिली है, जो अपनी कृषि तकनीक का निर्यात पूरे विश्व को कर रहा है। जिस देश में आधी से ज्यादा भूमि रेगिस्तान हो, वहां आधुनिक कृषि विधियां, व्यवस्थाएं और उत्पाद देखने को मिल रहे हैं।
कुछ उदाहरण
– इज़राइल में कृषि योग्य भूमि का आधा हिस्सा सिंचित है, लेकिन देश में कृषि योग्य भूमि में सिंचित क्षेत्र का यह अनुपात सबसे ज्यादा है। इस्राइल में विकसित कम्प्यूटर नियंत्रित ड्रिप्स सिंचाई णाली बड़ी मात्रा में पानी बचाती है और सिंचाई के जरिये ही खाद की आपूर्ति संभव बनाती है।
इज़राइल ने ऐसी अत्याधुनिक ग्रीनहाउस तकनीकों का विकास किया है, जो खास तौर से गर्म मौसम वाले इलाकों के लिये हैं। इसका योग उन फसलों के उत्पादन के लिए किया जा सकता है, जिनकी ऊंची कीमत पर मांग है। ग्रीनहाउस सिस्टम में विशिष्ट प्लास्टिक फिल्म और हीटिंग, वेन्टिलेशन और कनातनुमा ढांचों की मदद सेे इस्राइल के किसानों को हर सीजन में 35 से 40 लाख गुलाब प्रति हेक्टेयर उगाने में मदद मिलती है। साथ ही अौसतन प्रति हेक्टेयर 400 टन टमाटर भी इस तरीके से उगाया जाता है। खुले खेतों में होने वाले उत्पादन के मुकाबले यह मात्रा चार गुनी है।
– इज़राइल के दुग्ध उत्पादन ने भी आधुनिक तकनीकों का विकास अौर इस्तेमाल किया है। इससे इस उद्योग में काफी बदलाव आया है। 1950 के मुकाबले अब दूध का उत्पादन ढाई गुना ज्यादा हो गया है। यानी तब डेयरी में प्रति गाय सालाना उत्पादन औसतन 4,000 किलो था, जो अब 11,000 किलो हो गया है।
यूं तो कृषकों की संख्या में कमी आई है और सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान घटा है। वर्ष 2002 में यह योगदान महज 2फीसदी था। इसके बावजूद स्थानीय बाजारों में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिए कृषि की भूमिका अब भी महत्वपूर्ण है। साल 2004 के आंकड़ों के मुताबिक, जो लोग कृषि कार्य में सीधे रोजगार पाते हैं, वे देश के कुल श्रम संसाधन का 2 फीसदी हैं। पचास के दशक की शुरुआत में एक कृषि कार्मिक 17 लोगों के अनाज की आपूर्ति करता था। जबकि वर्ष 2003 में एक पूर्णकालिक कृषि कार्मिक 90 लोगों के लिये खाद्या की आपूर्ति कर रहा था।
इज़राइल की ज्यादातर कृषि सहकारी व्यवस्था पर आधारित है, जिसका विकास बीसवीं सदी के शुुरुआत में किया गया था। यहां के किबुत्ज एक बड़ी सामूहिक उत्पादन इकाई है। किबुत्ज के सदस्य संयुक्त रूप से उत्पादन के साधन अपनाते हैं। वे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी मिल–जुल कर हिस्सा लेते हैं। फिलहाल किबुत्ज की आय का ज्यादातर हिस्सा उन अौद्योगिक उद्यमों से आता है, जिनका स्वामित्व सामूहिक रूप से होता है। एक अन्य व्यवस्था है जिसका नाम है मोशाव। यह निजी पारिवारिक खेती पर आधारित है, जिनको कोआॅपरेटिव सोसाइटियों के रूप में संगठित किया गया है। दोनों प्रकार की व्यवस्थाओं में निवासियों को म्यूनिसिपल सेवाओं के पैकेज दिए गए हैं। तीसरी तरह की व्यवस्था मोशावा है। यह पूरी तरह से निजी तौर पर खेती करने वालों का गांव है। देश के कृषि उत्पाद में किबुत्ज ओर मोशाव का हिस्सा फिलहाल करीब 83 प्रतिशत है।
सिंचाई और जल प्रबंधन
जल को राष्ट्रीय धरोहर माना जाता है और उसका संरक्षण कानून द्वारा किया जाता है। जल आयोग हर साल प्रयोगकर्ताओं को जल का आवंटन करता है। जलापूर्ति का पूरी तरह से मापन किया जाता है और भुगतान भी खपत अौर जल की गुणवाा के हिसाब से किया जाता है। किसान पेयजल के लिये अलग मूल्य देते हैं, ताकि जल की बचत को बढ़ावा दिया जा सके। इज़राइल की कृषि में पानी की कमी एक बड़ी बाधा है। कृषि योग्य भूमि में सिफ‍र् आधी ही सिंचित है, क्योंकि पानी की कमी है। इज़राइल में उत्तर से दक्षिण 500 किलोमीटर की दूरी तक सालाना वर्षा 800 मिलीमीटर से 25 मिलीमीटर तक बारिश होती है। वर्षा ऋतु अक्टूबर से अप्रैल तक होती है, जबकि गर्मी के मौसम में कोई बारिश नहीं होती। प्रति हेक्टेयर पानी का सालाना इस्तेमाल औसतन 8,000 मीटर क्यूब से गिरकर 5,000 मीटर क्यूब रह गया है, जबकि पिछले 50 सालों में कृषि उत्पादन 12 गुना बढ़ा है। 2004 में यहां का कृषि उत्पादन 3.9 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के बराबर था।
सिंचाई तकनीक
50 के दशक की शुरुआत से कृषि में शोध के लिए गहन प्रयास किए गए। यह देखा गया कि सतह पर सिंचाई के बजाय दबावीकृत सिंचाई में जल का इस्तेमाल ज्यादा प्रभावी है। फिर सिंचाई उपकरण उद्योग की स्थापना हुई, जिसने तरह–तरह की तकनीकें और उपकरण विकसित किए। जैसे ड्रिप इरिगेशन (सरफेस और सब सरफेस), आॅटोमैटिक वॉल्वस और कंट्रोलर्स, सिंचाई जल ले जाने वाले माध्यम अौर स्वचलित छनना, लो डिस्चार्ज स्प्रेयर्स और मिनी सि्ंक्लर्स, कम्पनसेटेड ड्रिपर्स और सि्ंकलर्स। इनमें फर्टिगेशन (सिंचाई के साथ खाद का इस्तेमाल) आम है। खाद उत्पादकों ने अत्यंत घुलनशील और द्रव रूप वाले खाद का विकास किया है, जो इस तकनीक में काम आते हैं। सिंचाई का ज्यादातर नियंत्रण आॅटोमैटिक वॉल्व और कम्प्यूटराइज्ड कंट्रोलर के हाथों में होता है। सिंचाई उद्योग के इस विकास को पूरे विश्व में प्रतिष्ठा हासिल है और इसका 80 फीसदी से ज्यादा उत्पाद निर्यात किया जाता है।
सिंचाई व्यवस्था
इज़राइल के किसान इस बात को भलीभांति जानते हैं कि जल अमूल्य है अौर एक सीमित संसाधन है। इसका संरक्षण करने के साथ–साथ इसका सबसे प्रभावी और किफायती उपयोग किया जाना चाहिये। सिंचाई के ज्यादातर आधुनिक उपकरण सिंचाई पर नजर रखने और नियंत्रण रखने में मदद करते हैं, ताकि जल के इस्तेमाल की बेहतर क्षमता प्राप्त हो सके। देश भर में कृषि मौसम स्टेशनों का नेटवर्क है, जो मौसम के बारे में किसानों को तात्कालिक आंकड़े उपलब्ध कराते हैं। इन आंकड़ों के जरिये सिंचाई णाली का इस्तेमाल किया जाता है।
भविष्य का रुख
शहरी आबादी में बढ़ोतरी अौर राजनीतिक घटनाक्रम की संभावित दिशा से खेती के लिए ताजा पानी की सप्लाई घटने की आशंका है। समाधान यही है कि खारे पानी को खारेपन से मुक्त किया जाए और उससे बढि़या क्वॉलिटी का पानी ाप्त किया जाए। इस तरह पूरे साल की फसलों को कवर किया जा सकेगा अौर रिसाइकलिंग लगातार चलती रहेगी।
शोध और विकास
आज इज़राइल की खेती काफी हद तक शोध और विकास पर आधारित है। आधुनिक कृषि के सामने कई चुनौतियां हैं। जैसे बाजार में तियोगिता, जल की घटती उपलब्धता और गुणवाा, पर्यावरण संबंधी चिंताएं, मानव श्रम की लागत और उपलब्धता। इसके लिए जरूरत है लगातार खोज और वैज्ञानिक समुदाय के बीच करीबी सहयोग की। इज़राइल की कृषि कुछ खास चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसे कृषि योग्य भूमि अौर जल की सीमित उपलब्धता, मानव श्रम की उंची लागत। ये चुनौतियां भी शोध और विकास की जरूरत को आगे बढ़ाती हैं। शोध और विकास के लिये विाीय आवंटन इज़राइल में काफी ज्यादा है। इसमें हर साल 9 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश किया जाता है। यह रकम कृषि के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का तीन फीसदी है। शोध प्रयासों के कारण इज़राइली खेती पानी, भूमि अौर मानव श्रम के सक्षम इस्तेमाल का आदर्श नमूना बन गई है। इसके साथ ही रेकॉर्ड उत्पादन अौर उच्च गुणवाा के उत्पाद भी देखने को मिल रहे हैं।
बायोटेक्नोलॉजी
बायोटेक्नोलॉजी जैसे उभरते क्षेत्र का पिछले बीस सालों में यहां अदभुत विकास हुआ है। इससे पारंपरिक तरीकों की बाधाअों को खत्म करने का भरोसा मिलता है। बायोटेक्नोलॉजी हमें नई तकनीक अौर सामग्री उपलब्ध करा रही है।
यहां हम बात करेंगे कुछ मौजूदा अध्ययनों की, जो कृषि बायोटेक्नोलॉजी के प्रमुख क्षेत्रों में किये गये हैं।
– प्लांट बायोटेक्नोलॉजी, जिसमें मुख फसलों पर फोकस रखा गया है।
– माइक्रोबायल एग्रीबायोटेक्नोलॉजी : पौधों में कीट नियंत्रण, लाभकारी माइक्रो आॅर्गनिज्म (सूक्ष्म जीवाणुअों) का इस्तेमाल (जड़ों के विकास और बायोफर्टिलाइजेशन के लिए)
– पर्यावरण बायोटेक्नोलॉजी : जैविक तथा पर्यावरणीय उपचार के लिये पौधों का इस्तेमाल।
– लाइवस्टॉक (पशुधन ) बायोटेक्नोलॉजी : जनन अौर जेनेटिक फेरबदल (बेहतर विकास, दुग्ध अौर अंडों के उत्पादन के लिए), डीएनए मार्कर के जरिये चयन में सहयोग।
– जलीय व समुद्री बायोटेक्नोलॉजी।
कृषि बायोटेक्नोलॉजी अपनी राह बना रही हैं, जिससे वह जनन अौर खेती की परंपरागत विधियों से जुड़ी बाधाअों को खत्म कर रही है और नई विधियां प्रदान कर रही है।
कृषि विस्तार सेवा
कृषि अौर ग्रामीण विकास मंत्रालय की कृषि विस्तार सेवा ने इज़राइल में कृषिगत विकास के शुरुआती दौर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अंतर्गत गैरअनुभवी किसानों को प्रशिक्षण दिया गया, ताकि वे कृषि की आधुनिक विधियों का इस्तेमाल सीमित संसाधनों के बीच अपनी क्षमता के अनुसार कर सकें। साल बीतते गए अौर कृषि का तेजी से विकास हुआ, क्योंकि शोध में मिली जरूरी सूचनाएं तेजी से खेतों अौर किसानों तक पहुंचीं। देश में इस दिशा में काम करने वाली टीमों की स्थापना की गई, जिन्होंने देश भर में कुशल और सक्षम शिक्षण दिया। बाजार में तियोगिता का दौर होने के बावजूद कृषि के पेशेवर विकास में प्रशिक्षण की केंीय भूमिका रही। इससे गुणवाा वाले कृषि पैदावारों के उत्पादन को बढ़ावा मिला। देश के विभिन्न क्षेत्रों में जहां जो लाभ हासिल हैं, उनका दोहन करने की क्षमता बढ़ाई गई। इसका इस्तेमाल निर्यात करने और स्थानीय बाजार, दोनों के लिए किया गया। नतीजा यह है कि कृषि विस्तार और शोध, इज़राइली कृषि ढांचे का अहम हिस्सा बन गए हैं।
फसल कटाव के बाद प्रयुक्त तकनीकें
कृषि बाजारों में उच्च गुणवाा वाले उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे उत्पाद जो कीटों, रोगाणुअों अौर कीटनाशकों से मुक्त हों। एग्रीकल्चरल रिसर्च आॅर्गनाइजेशन में इंस्टिट्यूट फॉर टेक्नोलॉजी एंड स्टोरेज आॅफ एग्रीकल्चरल ॉड्क्ट्स का मुख्य मकसद यह है कि इज़राइल में फसल कटाई के बाद के कामों की मौजूदा और भावी समस्याओं का हल निकाला जाए, ताकि इस प्रकार के उच्च गुणवाा वाले उत्पादों की मार्केटिंग हो सके। स्थानीय खाद्य पदार्थ उद्योग और इससे संबंधित संस्थाओं की मांग पर फसल कटाई के बाद के कामों के मामले में विकास हुआ है। इससे अलग जो विकास हुआ, वह इस उद्योग के भविष्य की जरूरतों का नतीजा है। कुछ विकास स्थानीय तौर पर उत्पादित अौर आयातित सूखे कृषि उत्पादों के संरक्षण और पशुधन के लिए चारे को सुरक्षित ढंग से रखने में भी हुआ है।
फसल कटाई के बाद के कामों से जुड़ा शोध इस बात पर केंद्रित होता है कि ताजा, सूखे या संस्कृत खाद्य पदार्थों की हिफाजत, बचाव, उपचारण, संस्करण, भंडारण और परिवहन कैसे किया जाये। ताजा उत्पादों के मामलों में फसल कटाई के बाद के कामों से संबंधित शोध गतिविधियां एक खास दिशा में केंद्रित होती हैं। वह यह कि ताजे फलों, सब्जियों, फूलों और साज–सज्जा वाले अन्य उत्पादोंं की उनके खेत से बाहर निकलने के बाद गुणवाा कैसे सुनिश्चित की जाए ताकि उनके निर्यात द्वारा बेहतर कमाई की जा सके।
खाद और फर्टिगेशन ;सिंचाई मेें खाद का इस्तेमालद्ध
इज़राइल के दक्षिणी क्षेत्र में और खास तौर पर मृत सागर क्षेत्र में ऐसी कई खदानें हैं, जिनसे कृषि क्षेत्र को पोटाशियम, फॉस्फोरस, मैग्नेशियम मिलता है। खुदाई से ाप्त मटीरियल को कच्चे माल के तौर पर पूरी दूनिया में खाद उत्पादकों को निर्यात किया जाता है। कुछ की प्रोसेसिंग इज़राइल में ही की जाती है ताकि इज़राइल में खेती के लिये तैयार खाद मिल सके और निर्यात किया जा सके।
इज़राइल दुनिया में पोटाशियम नाइट्रेट के बड़े उत्पादकों में से एक है। यह अत्यंत घुलनशील खाद है, जो कई प्रकार के पौधों और फसलों के लिए उपयुक्त होता है। पोटाशियम नाइट्रेट को फर्टिगेशन सिस्टम या फोलियर अप्लीकेशन (पौधों के पाों को पोषक तत्वों की आपूर्ति) के जरिये पौधों को दिया जा सकता है। इस खाद को पाउडर या दानेदार आकार में बेचा जाता है। अत्यंत घुलनशील अन्य खादों, जिनका उत्पादन जिनमें होता है उनमें एमएपी यानि मोनो अमोनियम फॉस्फेट और एमकेपी यानि मोनो पोटाशियम फॉस्फेट शामिल हैं।
खाद बनाने वाले कंट्रोल्ड रिलीज फर्टिलाइजर्स यानी सीआरएफ का भी विकास और उत्पादन करते हैं। इन पर पोलिमर्स का आवरण चढ़ाया जा है, ताकि वे धीरे–धीरे देरी से मुक्त हों और जिनकी आपूर्ति डिफ्यूजन के जरिये हो। सीआरएफ से खाद का अच्छा इस्तेमाल होता है अौर इनसे भूमिगत जल का प्रदूषण भी कम होता है।
बहुत सी फसलों में विकास के समय में ये खाद काफी प्रभावी होते हैं। आम यौगिक खादों के मुकाबले सीआरएफ कुछ कारणों से ज्यादा महंगे होते हैं, लेकिन उनमें यह क्षमता होती है कि वे ग्रीनहाउस ोडक्शन के मामले में परंपरागत खादों की भूमिका खत्म कर सकें। ऐसा इसलिये है कि उनमें मौजूदा तरीके से फर्टिगेशन के दौरान पोषक तत्वों के भारी नुकसान को कम करने की क्षमता होती है। फर्टिगेशन के कारण भूमिगत जल का प्रदूषण वहां होता है, जहां फर्टिगेशन के पानी का दोबारा इस्तेमाल नहीं होता है।
अंतरराष्ट्रीय कृषि सहयोग
इज़राइल विकासशील देशों के साथ विभि क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर काफी जोर देता है। जैसे विशेषज्ञों के मेल–जोल, जानकारी बांटना, संयुक्त शोध और परियोजनाअों के विकास के दर्शन तथा शिक्षण के क्षेत्र में। अंतरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम में इज़राइल की खासियत है पेशेेवर अौर संचालन संबंधित उसकी अपनी उपलब्धियों, कृषि के अनुभव, ग्रामीण विकास अौर मानव क्षमता का विकास अंतरराष्ट्रीय सहयोग का काम विभि देशों के साथ उनकी सरकारों के स्तर पर तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों अौर सरकारी तथा गैरसरकारी संस्थाअों के साथ मिलकर भी किया जाता है।
इस संदर्भ में पिछले पांच दशकों में इज़राइल विदेश मंत्रालय के अंतरराष्ट्रीय सहयोग अनुभाग (माशाव) तथा कृषि अौर ग्रामीण विकास मंत्रालय क सेंटर फॉर इंटरनैशनल एग्रीकल्चरल डिवेलपमेंट कोआॅपरेशन अंतरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम बनाने अौर चलाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। ये कार्यक्रम इज़राइल में अंतरराष्ट्रीय कृषि शिक्षण पाठ्यक्रम पर अौर विदेशों में आॅन द स्पॉट पाठ्यक्रम पर आधारित होते हैं। संयुक्त कृषि शोध परियोजनाअों अौर विभि दर्शनोन्मुखी परियोजनाअों के विकास में भी ये कार्यक्रम चलाये जाते हैं।
इज़राइल में कृषि क्षेत्र के उपरोक्त पहलू उपलब्धियों के साथ–साथ इस क्षेत्र के भविष्य के विकास में आने वाली बाधाअों को भी रेखांकित करते हैं। कृषि कार्य महज खाद्य पदार्थों का उत्पादन नहीं है, इसका राष्ट्रीय योगदान काफी ज्यादा है। ताजा कृषि उत्पादों, दु्ग्ध अौर अंडा उत्पादन के क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने की हमारी क्षमता का महत्व इसके आर्थिक मूल्य से ज्यादा है। इज़राइल की कुल भूमि का आधा हिस्सा रेगिस्तान है अौर इसका विकास करना, रहने योग्य बनना अौर बसने के लिए लोगों को आकर्षित करना देश का मुख राष्ट्रीय लक्ष्य है।

सोमवार, 20 जुलाई 2015

राज्य के औचित्य पर उठाये जा रहे सवाल

राज्य के औचित्य पर उठाये जा रहे सवाल 
भाई शिवानंद जी की सोशल मिडिया में प्रकाशित पोस्ट "उत्तराखंड के समानित भाइयों बहनों और हमारे बच्चों। आपको ही तय करना है ,------,कभी भी कांग्रेस , भाजपा ,और उतराखंड क्रांति दल से कुछ भी अपेक्षा मत रखना तय खुद करना । यह राज्य गर्त में जा रहा है ,वे लोग अपना अपना या अपने- अपने लोगों को देख रहे हैं।  स्तिथितियाँ उतराखंड के बिपरीत हो रही हैं।  .उतराखंड के लोग त्राहि माम -त्राहिमाम कर रहे हैं।  शिक्षक ,,इन्जिनेयर ,डाक्टर नेता सभी लोग पहाड़ों को छोड़ रहे हैं ,सभी अपनी जमीने तराई भावर दून में तलाश रहे हैं । पहाड़ का सपना चूर -चूर हो रहा है। उतराखंड राज्य के औचित्य पर ही प्रश्न लग रहा है तो ? जय उतराखंड ? "  ने मेरे दिलो -दिमाग को झंझोड़  दिया है मन विवश हो रहा है कि इस विषय पर कुछ कड़वा लिखू। 
यह भी इसलिए कि मैंने भाई शिवानंद चमोली को राज्य की मांग के लिए चले आंदोलन के शुरूआती दिनों से बढ़ -चढ़ कर भाग लेते देखा। वह उत्तरखंड क्रांति दल के समर्पित कार्यकर्त्ता के रूप में हर जगह जूझते दिख जाते थे। उत्तराखंड पाहड़ी राज्य का उनका एक सपना उनकी आँखों में पलता रहा। अगर वह शख्स आज हताश भरे शब्दों में राज्य के होने के औचित्य पर ही सवाल उठाये तो उन तमाम लोगो और एक खुशहाल राज्य की समर्थक ताकतों को उन कारणों को चिन्हित कर समाधान की ओर बढ़ना ही होगा। ऐसा मेरा सोचना है।
एक तरफ हालात से उपजे भाई शिवानंद के निराशा और हताशा भरे विचार हैं तो दूसरी और पूर्व विधायक भाई जोत सिंह घुनसोला के दुसरो को निर्देशित करते और बार -बार दोहराये जा रहे वाक्य हैं कि " गैर सैण राजधानी हो । हमारी कार्य संस्कृति में बदलाव लाना होगा । हम सबको जवाबदारी व जिम्मेदारी के साथ काम करना होगा । ये पहाड़ी राज्य दोहन के लिये नहीँ बना है मात्र इतना समझना होगा ?"
एक तरफ निराश आंदोलनकारी है तो दूसरी ओर सत्ता की खनक का आनंद ले चुके नेता का जनता को हिदायत देती टिप्पणी। इन दो विषम और विपरीत बातो के बीच ऐसा कुछ जरूर है जो एक के सपने पूरे नहीं होने दे रहा है तो दूसरे को जनता से किये जा रहे वादो को पूरा नहीं होने दे रहा है। 

दरअसल राजनितिक पार्टियों और उनके नेताओं ने अपने आचरण और व्यवहार से कोई ऐसा सन्देश जनता को नहीं दिया जो उन्हें प्रेरित करता हो ,भरोसा दिलाता हो ,कारण भी साफ़ है और कड़ुआ भी ,कि राजनीती ने हमें विकास के जिस सुख और बिना डैनों में ताकत हासिल किये चाँद -सूरज छू लेने की भूख जगाकर एक अंधी दौड़ में शामिल कर दिया है। वह हमें सच स्वीकार करने नहीं देगी। इस दौड़ में सिर्फ मुझे जीतना है इसके लिए कोई भी उपाय जायज है ,इसलिए आप किसी से त्याग और बलिदान की उम्मीद नहीं कर सकते। यह राज्य ऐसे ही लंगड़ाते -लड़खड़ाते ,गिले -शिकवों के बीच तीन जनपदो में सभी आधुनिक भौतिक सुखो को समेटलेने को आतुर भीड़ के बढ़ते वज़न के साथ चलता रहेगा।जहां जनता गिले-शिकवे करती रहेगी पर अपने सपनो के लिए अंधी गलियों में दौड़ती रहेगी। वहीं राजनितिक नेतृत्व कर रहे हैं ,करेंगे ,आप ऐसा करो ,आप को यह मिल जाएगा के उपदेशात्मक भूमिका में दिखता रहेगा। राज्य की यह नियति कब बदलेगी कह पाना भविष्य के गर्भ में है।