मंगलवार, 12 जुलाई 2016

अर्थशास्त्र भी धर्म और विचारपंथ में बंटा है।

 अर्थशास्त्र भी धर्म और विचारपंथ में बंटा है।


हम में से ज्यदातर लोग समाज को धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के दायरों में बंटा होना जानते हैं। हम यह भी जानते हैं कि सभ्यता के अंग साहित्य, कला-संस्कृति, स्थापत्य और परम्पराएँ भी ऐसे ही दायरों में बंटी है। किन्तु विद्वानों के दिमाग ने विज्ञानं और सामाजिक विज्ञानं को भी अपनी सामुदायिक अथवा क्षेत्रीय श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए, ऐसे ही दायरों में बाँट लिया है।
ऐसी ही एक पुस्तक से रूबरू होना मेरे लिए आश्चर्य और कौहतुअल का विषय बना। कुछ दिन पूर्व मेरे एक मित्र के सौजन्य से मुझे मार्क्सवादी अध्येता-नेता एम् जी बोकरे की अर्थशास्त्र पर लिखी पुस्तक पढ़ने और चर्चा करने को मिली। वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी चुनौतियों, लाभ के बंटवारे, श्रम और श्रमिक के नियोजन, हितलाभ,श्रमिक विवाद, पूंजी, ब्याज, जैसे जटिल विषयों पर विद्वान् लेखक ने शोधपूर्ण अध्याय लिखे।
मेरे लिए विश्मयकारी था कि लेखक ने वेद में उल्लेखित मंत्रो से लेकर आचार्य बृहस्पति, महाभारत, विदुर, बौद्ध ग्रन्थ और आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र का गहन परीक्षण कर 'भारतीय अर्थशास्त्र
के स्वरूप और सिद्धांतो को प्रतिपादित करने का प्रयास किया।
इस पुस्तक से परिचित होने से पूर्व मैं अर्थशास्त्र के सामान्यतः स्वीकार्य स्वरूप से ही परिचित था कि अर्थशास्त्र के आधुनिक सिद्धांत विज्ञानं के सास्वत नियमो की तरह उत्पादन के साधन श्रम, माल, पूंजी, मशीन और भूमि के सम्बन्ध तथा उत्पादन लागत, मुनाफा, बाजार में मांग और मूल्य को निर्धारित-प्रभावित-नियंत्रित करते हैं।  किताब पढ़ कर पता चला कि ज्ञान भी धर्म, जाति और क्षेत्र के तंग नज़रिये से प्रस्थापित किये जाते हैं। मुझे इसीसे पता चला कि अर्थशास्त्र भी मुस्लिम, ईसाई और हिन्दू के साथ साथ अमेरिकन, योरोपियन, समाजवादी, पूंजीवादी या कम्युनिष्ट, हो सकता है।
मेरा आश्चर्य तब और बढ़ गया जब पुस्तक की प्रस्तावना और प्रकथन से ज्ञात हुआ कि "भारतीय अर्थशास्त्र" के शीर्षक से लिखी इस शोधपूर्ण पुस्तक को प्रकाशको ने छापने में असमर्थता जताई।निराश मार्क्सवादी-कम्युनिस्ट नेता व अध्येता को धुर दक्षिणपंथी  बीएमएस नेता डी बी ठेंगडी की शर्त तथा कम्युनिस्ट पार्टी से निष्कासन की पीड़ा के साथ इस पुस्तक को "Hindu Economics" {हिन्दू अर्थशास्त्र } नाम देकर 1993 में प्रकाशित करवाना पड़ा।
पुस्तक में यूँ तो विभिन्न ग्रंथो के सन्दर्भ के साथ दूसरे स्थापित अर्थशास्त्रो की तुलनात्मक विवेचना भी शामिल है। किन्तु, महत्वपूर्ण यह है कि हिन्दू अर्थशास्त्र मोटे तौर पर जिन 10 आदर्श लक्ष्यों की प्राप्ति या स्थापना सुझाई गई है, उंनमे एक ब्याज मुक्त बैकिंग प्रणाली मुस्लिम अर्थशास्त्र से स्वीकार की गई है। पुस्तक और 10 लक्ष्यों की फोटो शेयर कर रहा हूँ, ऐसे वक्त में जबकि दुनिया वैकल्पिक अर्थव्यवस्था और अर्थशास्त्र की तलाश में है क्या हिन्दू इकोनॉमिक्स उस जरुरत को पूरा कर सकता है ?

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