शुक्रवार, 9 मई 2014

जात न पूछो साधु की ,सब कुछ पूछो नेता की :


जाने किस संत के मुख से निकला होगा कि सज्जन ,विद्वान ,गृहस्थ त्यागी और परोपकारी साधु की जात न पूछो। राजनीती में अनेक लोग साधु तो हैं किन्तु राजनेता साधु नहीं होता। वह आनेक प्रलोभन और आश्वासन दे आपके ' वोट ' से शासक बनता है। उसे वोट चाहिए तो जात तो बतानी ही पड़ेगी। जात ही क्यों उसे तो अपनी बोली भाषा ,क्षेत्र, धर्म और नस्ल भी जनता को बतानी होगी। नहीं तो मुझ जैसे मूढ़मति वोट उसे क्यों देंगे ?
भारत का भविष्य प्रियंका के श्रीमुख से ' नीच ' राजनीती शब्द क्या निकले ,पूरे समाज में हर किसी की जाति को ले कोहराम मचा है। कौन नीच ,कौन ओबीसी ,कौन स्वर्ण ,कौन अवर्ण ,कौन कहाँ से आया ,कौन क्या था -क्या हो गया ,कौन किस नस्ल का है ,अब ,यह बताना जरुरी हो गया। वैसे तो हर भारतीय के नाम पर लगी पूंछ उसकी जात और नस्ल ढोल पीट कर घोषित होती है फिर भी कुछ शब्दों में जो भरम पैदा करते हैं खुलासा जरुरी है। राहुल, गांधी कैसे हो गए ,मोदी ओबीसी क्योंकर हुए ,माया दलित ,जया और ममता सवर्ण। ऐसा है क्यों मान लूँ मैं ?प्रमाण देने होंगे इन्हे ,तभी तो न वोट मिलेंगे और लोकतंत्र जीवित रहेगा और इनमे से कोई मेरा राजा हो सकेगा। 

उत्तराखंड में मतदान से पूर्व जिला निर्वाचन अधिकारी ने एसएमएस के जरिये सभी मतदाताओं से धर्म ,जाति ,क्षेत्र ,भाषा तथा प्रलोभन और दबाव से मुक्त भयमुक्त हो वोट डालने की अपील की थी। क्यों की थी ?जानते वो भी हैं कि भारतीय समाज में बिना इस हथकंडे को अपनाये वोट नहीं मिलते। चारो ओर से मिल रही खबरे तो यही बतरही हैं कि सभी ने धर्म ,जाति और क्षेत्र के हिसाब से एकजुट हो वोटिंग की है। कमोबेश यही परिदृश्य पूरे देश में हुए मतदान का है तब इस तरह की अपीलों का औचित्य ही क्या है ? 
एक अच्छे स्तंभकार पत्रकार ने जो सिख हैं ने एक बार एक लेख में लिखा था कि हिंदुस्तान में आप अपनी मेहनत ,योग्यता ,दक्षता ,हुनर से अपने जीवन का सब कुछ बदल सकते हैं किन्तु अपनी 'जात' नहीं बदल सकते। जात ही क्यों यहां तो विवेकशील हो आप अपना धार्मिक विश्वास भी नहीं बदल सकते। तो बेहतर है हर किसी को अपनी जात ,नस्ल ,धर्म ,भाषा और क्षेत्र से प्रतिबद्धताएं घोषित करी चाहिए और जीवन में सफलता के लिए इनका खुल कर उपयोग भी करना चाहिए।
इस बात के मर्म को देश के मूर्धन्य विद्वान नेता स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम ने खूब समझा था। बहुत पहले अपनी पुत्री मीरा कुमार के चुनाव क्षेत्र बिजनौर में जब उन्होंने जाती आधार पर वोट की अपील की तो प्रेस ने उनसे पूछा ,सारा जीवन अपने जाति -वर्ण व्यवस्था के खिलाफ अपने को खड़ा रखा तो अब यह अपील क्यों ?तो सीधा और सरल सा उत्तर था उनका ,बोले मैं देर से सही पर समझ पाया हूँ कि देश में राजनीती जात से अलग हो कर नहीं हो सकती। 

गुरुवार, 8 मई 2014

मनुष्य होने उद्देश्य

                                       * वेद का निर्देश *                                              तन्तुतन्वन  रजसो    भनुमन्विहि ,ज्योतिष्मत पथो रक्षा धियो कृतान I अनुल्वन  वयत  जोगुवामयो , मनुर्भव जनया  दैव्यं  जनम I  --ऋग्वेद -१०/५३/                             
 भावार्थ --हे मनुष्य ! संसार के ताने -बाने को बुनता हुआ भी तू प्रकाश के पीछे चल I बुद्दि से परिष्कृत प्रकाशयुक्त  मार्गो की तू रक्षा कर I निरंतर  ज्ञान और कर्म के मार्ग पर चलता हुआ उलझन रहित कर्म का विस्तार कर तथा अपने पीछे दिव्य गुणयुक्त उत्तराधिकारी को जनम दे I इस प्रकार  तू मनुष्य बन l                                                                                                                                                                                                                                                                 

बुधवार, 7 मई 2014

ओट में दिया गया वोट

आपके हाथों मतदान केंद्र पर ओट में दिया गया वोट देश के राजनितिक परिदृश्य को बदल सकता है। इस वोट से आपका भाग्य  बदले या न बदले किन्तु चुनावी समर में जूझ रहे प्रत्यशियों का भाग्य जरूर तय हो जाता है। मतदान अधिक से अधिक हो यह जनरूचि ,आकांक्षा जनभागिता का परिचायक तो है ,किन्तु इससे सत्ता सञ्चालन के चरित्र में और पीड़ादायी हालात में कोई सुधार हो यह जरुरी नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की व्यवस्था में कोई जवाबदेही तय न होना है।अधिक या काम मतदान नेता या राजनितिक दल बदल सकता है ,सत्ता का चरित्र नहीं।   
लोकसभा और राज्यों की विधानसभा लोक आकाँक्षा के अनुरूप कानून तथा नीतियों के निर्धारण और उनका कार्यन्वयन उचित ढंग से कर सके इस निमित जन प्रतिनिधियों का चयन इस गोपनीय मतदान द्वारा किया जाता है। इसी गोपनीयता के लिए आपका वोट एक ओट में लिया जाता है। इसी ओट में मतदाता और प्रत्याशी के बीच एक दूसरे को छले जाने का खेल भी रचा जाता है।  लोग अधिक से अधिक संख्या में इस काम को अपना कर्तव्य मान पूर्ण जागरूकता और विचार के साथ अपने अधिकार का प्रयोग करे ,यह अपेक्षा की जाती है।  
व्यवहार में सभी व्यक्ति एकमत नहीं हो सकते। सभी स्पष्ट और जानकार वक्त नहीं होते। सभी सहिष्णु और दूसरों के प्रति आदर भाव रखने वाले नहीं होते। सभी सर्वहित चिंतन और लोकहितकारी कार्यो को करने वाले नहीं होते। सत्ता केन्द्रो में पलने वाले अनेक लोग जो उक्त श्रेणी में नहीं आते। जिनका मिज़ाज़ उत्तेजना ,आक्रोश ,स्वार्थपूर्ति ,दूसरे के धन ,यश ,प्रतिष्ठा और स्त्री को छल पूर्वक हरलेने  की जुगत में रहने वाले लोग इस मतदान व्यवस्था के बड़े दुश्मन हैं।  
समाज के ऐसे लोग बहुधा अपने या अपने वर्गीय हितो के लिए लोकतंत्र के इस मतदान  महायज्ञ को बाधित  और प्रभावित करते हैं। सच तो यह है कि " ओट में दिया गया वोट " सत्ता के लिए सघर्ष कर रहे व्यक्ति अथवा राजनितिक दलों के वोट प्रबंधन (जुगत ) कला का निरूपण मात्र है। मतदाता को चुनाव से ठीक कुछ समय पूर्व ,उसकी वास्तविक परेशानियों ,चिंताओं ,विरोध में आ रहे तर्कों और नज़रिये से कैसे विमुख किया जाए ? यह उसके चुनाव प्रबंधन कला की दक्षता पर निर्भर है। चुनावी परिदृश्य को प्रचारतंत्र के जरिये धुंधला -गदला बना कर मतदाता को विभ्रमित कर मतदान से विमुख कर देना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। समाज का जो वर्ग शासन प्रबंधन और नीतियों की बारीकियों को समझता है ,चुनाव को प्रभावित कर सकता  है उसकी घेरा बंदी दूसरे उन समूहों की एकजुटता से कर दी जाती है जो धर्म ,जाति ,क्षेत्र ,भाषा ,बोली। ,शराब ,धन या फिर कोई और प्रलोभन के जरिये "ओट में वोट " डालने को उचित मानते हैं।  तब उस जागरूक वोट का औचित्य ही क्या रह जाता है ? जिसे अधिक से अधिक संख्या में ,मतदान को उसका अधिकार बता वोट के लिए प्रेरित किया जाता है। 
          
        
 .