बुधवार, 7 मई 2014

ओट में दिया गया वोट

आपके हाथों मतदान केंद्र पर ओट में दिया गया वोट देश के राजनितिक परिदृश्य को बदल सकता है। इस वोट से आपका भाग्य  बदले या न बदले किन्तु चुनावी समर में जूझ रहे प्रत्यशियों का भाग्य जरूर तय हो जाता है। मतदान अधिक से अधिक हो यह जनरूचि ,आकांक्षा जनभागिता का परिचायक तो है ,किन्तु इससे सत्ता सञ्चालन के चरित्र में और पीड़ादायी हालात में कोई सुधार हो यह जरुरी नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की व्यवस्था में कोई जवाबदेही तय न होना है।अधिक या काम मतदान नेता या राजनितिक दल बदल सकता है ,सत्ता का चरित्र नहीं।   
लोकसभा और राज्यों की विधानसभा लोक आकाँक्षा के अनुरूप कानून तथा नीतियों के निर्धारण और उनका कार्यन्वयन उचित ढंग से कर सके इस निमित जन प्रतिनिधियों का चयन इस गोपनीय मतदान द्वारा किया जाता है। इसी गोपनीयता के लिए आपका वोट एक ओट में लिया जाता है। इसी ओट में मतदाता और प्रत्याशी के बीच एक दूसरे को छले जाने का खेल भी रचा जाता है।  लोग अधिक से अधिक संख्या में इस काम को अपना कर्तव्य मान पूर्ण जागरूकता और विचार के साथ अपने अधिकार का प्रयोग करे ,यह अपेक्षा की जाती है।  
व्यवहार में सभी व्यक्ति एकमत नहीं हो सकते। सभी स्पष्ट और जानकार वक्त नहीं होते। सभी सहिष्णु और दूसरों के प्रति आदर भाव रखने वाले नहीं होते। सभी सर्वहित चिंतन और लोकहितकारी कार्यो को करने वाले नहीं होते। सत्ता केन्द्रो में पलने वाले अनेक लोग जो उक्त श्रेणी में नहीं आते। जिनका मिज़ाज़ उत्तेजना ,आक्रोश ,स्वार्थपूर्ति ,दूसरे के धन ,यश ,प्रतिष्ठा और स्त्री को छल पूर्वक हरलेने  की जुगत में रहने वाले लोग इस मतदान व्यवस्था के बड़े दुश्मन हैं।  
समाज के ऐसे लोग बहुधा अपने या अपने वर्गीय हितो के लिए लोकतंत्र के इस मतदान  महायज्ञ को बाधित  और प्रभावित करते हैं। सच तो यह है कि " ओट में दिया गया वोट " सत्ता के लिए सघर्ष कर रहे व्यक्ति अथवा राजनितिक दलों के वोट प्रबंधन (जुगत ) कला का निरूपण मात्र है। मतदाता को चुनाव से ठीक कुछ समय पूर्व ,उसकी वास्तविक परेशानियों ,चिंताओं ,विरोध में आ रहे तर्कों और नज़रिये से कैसे विमुख किया जाए ? यह उसके चुनाव प्रबंधन कला की दक्षता पर निर्भर है। चुनावी परिदृश्य को प्रचारतंत्र के जरिये धुंधला -गदला बना कर मतदाता को विभ्रमित कर मतदान से विमुख कर देना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। समाज का जो वर्ग शासन प्रबंधन और नीतियों की बारीकियों को समझता है ,चुनाव को प्रभावित कर सकता  है उसकी घेरा बंदी दूसरे उन समूहों की एकजुटता से कर दी जाती है जो धर्म ,जाति ,क्षेत्र ,भाषा ,बोली। ,शराब ,धन या फिर कोई और प्रलोभन के जरिये "ओट में वोट " डालने को उचित मानते हैं।  तब उस जागरूक वोट का औचित्य ही क्या रह जाता है ? जिसे अधिक से अधिक संख्या में ,मतदान को उसका अधिकार बता वोट के लिए प्रेरित किया जाता है। 
          
        
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