शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

आपातकाल -अनुशासन पर्व - मेरी नज़र से



40 बरस बीत गए। मैं एक एक कुछ कर गुजरने को उतावले नौजवान से परिपक्व नौजवान हो चुका हूँ। 1973 में राष्ट्रिय छात्र संघ का जिला अध्यक्ष और 1975 में शहर युवक कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के कुछ माह बाद ही लोकनायक जयप्रकश जी के नेतृत्व में चल रहे छात्र एवं युवा आंदोलन को विपक्षी दलो के हवा व समर्थन दिए जाने से कानून -व्यवस्था को जगह -जगह चुनौती मिलने लगी थी। अराजकता का माहौल पाँव पसारने लगा था। यह लड़ाई 1971 के आम चुनाव में भारी बहुमत से सत्ता में पहुंची इंदिरा गांधी के चुनाव को चुनौती देती याचिका पर उनके विरुद्ध आये फैसले से और तेज हो गई थी।
बिगड़ते हालात में 25 जून 1975 की मध्य रात्रि को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। सुबह सबेरे सभी कुछ पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियो के हाथों में था। देश सहमा और डरा था। विपक्ष के सभी बड़े नेता रात्रि में गिरफ्तार कर लिए गए थे। देहरादून शहर में अनेक विपक्षी नेता गिरफ्तार हुए। जनता के लोकतान्त्रिक अधिकार सस्पेंड कर दिए गए थे।
देश भर में इंदिरा जी के इस कदम के समर्थन और विरोध में सहमी -सहमी आवाज़े भी उठने लगी थी। सबसे बेहतर और इमरजेंसी का समर्थन करता बयान ,जो कहा जाता है कि इंदिरा जी ने मैनेज किया था ,सर्वोदय आंदोलन के जनक वयोवृद्ध गाँधीवादी आचार्य विनोबा भावे की ओर से आया। उन्होंने इसे अनुशासन पर्व की संज्ञा दी। यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष होने के नाते मैंने इसे अनुशासन पर्व की तरह ही देखा और माना। 
इस दौरान यूथ कांग्रेस की ओर से संजय गांधी ने पांच सूत्री कार्क्रम देश के नौजवानो को दिया। इस बात को कोई माने या न माने पर समाजिक सोच में बदलाव और नौजवानो को किसी रचनात्मक कार्य में लगा देने के इस कार्यक्रम को आज भी अपरिहार्य और सराहनीय माना जाता है। मेरी यूनिट में मेरे साथ महमंत्री वीरेंदर मोहन उनियाल और मंज़ूर एहमद बेग की अगुवाई में नौजबानो की बड़ी फ़ौज़ ने इस कार्क्रम को ज़मीं पर उतरने में पूरी शिद्दत से काम किया। 
जिस सफाई अभियान का आज नरेन्द्र मोदी श्रेय ले रहें हैं वह पांच सूत्री कार्क्रम ,स्वच्छता ,वृक्षारोपण ,दहेज़ विरोध ,परिवार नियोजन और साक्षरता का एक हिस्सा था। और हमने सैकड़ो नौजवान साथियों के साथ गली - मौहल्लो में चोक हुई नलिया ,बिखरी पड़ी गंदगी साफ़ की। जगह -जगह वृक्षारोपण हुए ,परिवार नियोजन को प्रेरित करने को कैम्प लगाए गए। अनेक मौहल्लो में प्रौढ़ -साक्षरता शिविरो का भी सञ्चालन हुआ। तब पीआरडी मुंशी और कुछ समय बाद अम्बिका सोनी यूथ कांग्रेस की राष्ट्रिय अध्यक्ष थी। 
इसी दौरान शहरी और ग्रामीण क्षेत्रो के नागरिको को गरीबी और दुरावस्था से निकाल एक अच्छी ज़िंदगी के लिए 20 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी की ओर से की गई। हमारी यूथ कांग्रेस ने इसमें से भी कुछ बिन्दुओं पर अच्छा काम किया। आवासहीन गरीबों को रिक्त पड़ी ज़मीन आबंटित करने की पहल करते हुए पत्थरीय पीर के बिंदल तट लगभग 400 पटटे यूथ कांग्रेस ने आबंटित किये। यह 20 सूत्री कार्यक्रम आज भी हर राज्य में विकास का आदर्श प्रारूप बना हुआ है। बस इन्ही सब बातों की वजह से मैं इसके सार्थक पक्ष का समर्थक हूँ।
पर आज एक परिपक्व राजनितिक समझबूझ रखने वाले नौजवान की हैसियत से मुझे यह आंकलन करने में भी कोई संकोच या भय नहीं है कि इमरजेंसी के दौरान अभिव्यक्ति की आज़ादी और पत्रकारों ,कवियों और लेखकों की लेखनी पर हमले हुए और देश समाज तथा राजनितिक पार्टियों ,खासकर कांग्रेस के चरित्र और कार्यप्रणाली में आये परिवर्तन ने अधोगामी रुख अख्तियार कर लिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज सभी पार्टियों और संस्थाओं /संगठनो में संचालन की सामूहिक- सोच ,निर्णय और नेतृत्व की बजाये व्यक्ति और उसके सम्बन्धी केंद्रित व्यवस्था ने लोकतंत्र को भरी आघात पहुंचाया है। आज सरकारी कार्यलय , सरकार और राज्य प्रशासन अपने प्रति जवाबदेह न रह कर कुछ ख़ास लोगो ,दलालो या सिफारिशी रिश्तो से संचालित होने लगे हैं। लोकतंत्र के प्रति जवाबदेह संस्थाओं की शक्ति क्षीण हुई है। उनका सविधान और नियम -क़ानून आधारित ताना बाना टूट रहा है। लोग माने या न माने सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिए राजनितिक पार्टियों और नेताओं ने अपने घोषणा पत्रो और भाषणो के जरिये जो गैर जरुरी भूख लोगो के मनो में जगाई है वह भष्मासुर की कहानी याद दिलाती है पर इस बार कोई मोहिनी इस भष्मासुर के साथ नृत्य कर पायेगी इस में संदेह है।

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