सोमवार, 20 जुलाई 2015

राज्य के औचित्य पर उठाये जा रहे सवाल

राज्य के औचित्य पर उठाये जा रहे सवाल 
भाई शिवानंद जी की सोशल मिडिया में प्रकाशित पोस्ट "उत्तराखंड के समानित भाइयों बहनों और हमारे बच्चों। आपको ही तय करना है ,------,कभी भी कांग्रेस , भाजपा ,और उतराखंड क्रांति दल से कुछ भी अपेक्षा मत रखना तय खुद करना । यह राज्य गर्त में जा रहा है ,वे लोग अपना अपना या अपने- अपने लोगों को देख रहे हैं।  स्तिथितियाँ उतराखंड के बिपरीत हो रही हैं।  .उतराखंड के लोग त्राहि माम -त्राहिमाम कर रहे हैं।  शिक्षक ,,इन्जिनेयर ,डाक्टर नेता सभी लोग पहाड़ों को छोड़ रहे हैं ,सभी अपनी जमीने तराई भावर दून में तलाश रहे हैं । पहाड़ का सपना चूर -चूर हो रहा है। उतराखंड राज्य के औचित्य पर ही प्रश्न लग रहा है तो ? जय उतराखंड ? "  ने मेरे दिलो -दिमाग को झंझोड़  दिया है मन विवश हो रहा है कि इस विषय पर कुछ कड़वा लिखू। 
यह भी इसलिए कि मैंने भाई शिवानंद चमोली को राज्य की मांग के लिए चले आंदोलन के शुरूआती दिनों से बढ़ -चढ़ कर भाग लेते देखा। वह उत्तरखंड क्रांति दल के समर्पित कार्यकर्त्ता के रूप में हर जगह जूझते दिख जाते थे। उत्तराखंड पाहड़ी राज्य का उनका एक सपना उनकी आँखों में पलता रहा। अगर वह शख्स आज हताश भरे शब्दों में राज्य के होने के औचित्य पर ही सवाल उठाये तो उन तमाम लोगो और एक खुशहाल राज्य की समर्थक ताकतों को उन कारणों को चिन्हित कर समाधान की ओर बढ़ना ही होगा। ऐसा मेरा सोचना है।
एक तरफ हालात से उपजे भाई शिवानंद के निराशा और हताशा भरे विचार हैं तो दूसरी और पूर्व विधायक भाई जोत सिंह घुनसोला के दुसरो को निर्देशित करते और बार -बार दोहराये जा रहे वाक्य हैं कि " गैर सैण राजधानी हो । हमारी कार्य संस्कृति में बदलाव लाना होगा । हम सबको जवाबदारी व जिम्मेदारी के साथ काम करना होगा । ये पहाड़ी राज्य दोहन के लिये नहीँ बना है मात्र इतना समझना होगा ?"
एक तरफ निराश आंदोलनकारी है तो दूसरी ओर सत्ता की खनक का आनंद ले चुके नेता का जनता को हिदायत देती टिप्पणी। इन दो विषम और विपरीत बातो के बीच ऐसा कुछ जरूर है जो एक के सपने पूरे नहीं होने दे रहा है तो दूसरे को जनता से किये जा रहे वादो को पूरा नहीं होने दे रहा है। 

दरअसल राजनितिक पार्टियों और उनके नेताओं ने अपने आचरण और व्यवहार से कोई ऐसा सन्देश जनता को नहीं दिया जो उन्हें प्रेरित करता हो ,भरोसा दिलाता हो ,कारण भी साफ़ है और कड़ुआ भी ,कि राजनीती ने हमें विकास के जिस सुख और बिना डैनों में ताकत हासिल किये चाँद -सूरज छू लेने की भूख जगाकर एक अंधी दौड़ में शामिल कर दिया है। वह हमें सच स्वीकार करने नहीं देगी। इस दौड़ में सिर्फ मुझे जीतना है इसके लिए कोई भी उपाय जायज है ,इसलिए आप किसी से त्याग और बलिदान की उम्मीद नहीं कर सकते। यह राज्य ऐसे ही लंगड़ाते -लड़खड़ाते ,गिले -शिकवों के बीच तीन जनपदो में सभी आधुनिक भौतिक सुखो को समेटलेने को आतुर भीड़ के बढ़ते वज़न के साथ चलता रहेगा।जहां जनता गिले-शिकवे करती रहेगी पर अपने सपनो के लिए अंधी गलियों में दौड़ती रहेगी। वहीं राजनितिक नेतृत्व कर रहे हैं ,करेंगे ,आप ऐसा करो ,आप को यह मिल जाएगा के उपदेशात्मक भूमिका में दिखता रहेगा। राज्य की यह नियति कब बदलेगी कह पाना भविष्य के गर्भ में है। 

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