शनिवार, 18 अगस्त 2018

एक किताब-ओस के रंग


मेरी छोटी बहन विकी आर्य की प्रकृति से मिली संवेदनाओं को समेटते कविता के लघु बांधो का यह तीसरी प्रकाशित पुस्तक है।
यूँ तो विकी आर्य बाल साहित्य के चित्रांकन, सोशल ऑब्जेक्टिव डॉक्यूमेंट्री व विज्ञापन की दुनिया का एक सिद्धहस्त नाम है किंतु उसने प्रकृति से मिली संवेदनाओं को अपनी कलाकृतियों और कविताओं में भी बखूबी उकेरा है।
बीएचयू से फाइन आर्ट में एमए गोल्डमैडलिस्ट हो कर उसने विज्ञापन व्यवसाय की दुनिया मे कदम रखा। धर्मयुग और नवभारत टाइम्स को अनेक चित्रों से सजाने से शुरू हुआ उनका कदम कलाओं की अनेक विधाओं में अपनी छाप छोड़ आगे बढ़ता रहा।
उत्तराखंड की आर्ट एकेडमी की पहली एग्जीबिशन में राज्यपाल सुरजीत बरनाला द्वारा मूर्ति शिल्प का प्रथम पुरस्कार मिला। गीतकार गुलज़ार ने अपने स्नेह से उन्हें नवाज़ा और प्रख्यात अभिनेत्री शबाना आज़मी के हाथों उनके पहले काव्य संग्रह कैनवास का वाचन और लोकार्पण हुवा।
रेमाधव जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन से यह उनका तीसरा कविता संग्रह है जिसमे हिंदी के भावबिन्दु का इंग्लिश में रूपांतरण ममता गोविल ने किया है। पुस्तक ऐमेज़ॉन पर भी उपलब्ध है।
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बरसात के इस मौसम में जब धरा सज्वला हो हरीतिमा की चादर ओढ़ लेती है कहीं  किसी के आंसू भी बन जाती है, इसी को व्यक्त करती ये छह पंक्तियां-
कईं बार चाहा
कि बदल बन जाऊं
भिगो-भिगो कर धरती को
खिलखिलाऊँ
पर जब बरसा
तो आंखे उसकी नम करदी।
और क्या कर पाया मैं ?
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किसकी आंखों में है
स्वप्नों की कस्तूरी गंध ?
कि जंगल-जंगल हो जाने को
चाहता है मन।

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